वक्त बेवक्त अंधेरों का जुल्म इतना बढ़ा है रौशनी को भी चिराग लेकर चलना पड़ा है बड़े दरख्तों के साए में भी कभी नन्हे पौधा पनपता है घनी छायादार परछाइयों में भी भला कोई दिखता है यह वरदान प्रकृति से केवल मां को ही मिला है आने वाला विराट कल भी गोदी में खेलता है बबली भाटी बैसला ् ©Babli BhatiBaisla विराट महज़