होती है तकलीफ़ बहुत जब मैं बेबस हो जाता हूँ। दर्द की रँगीं चादर मन पर ओढ़ के मैं सो जाता हूँ। यादों की भीनी ख़ुशबू जब दिल पर दस्तक देती है- सबसे छुप कर इक कोने में चुपके से रो जाता हूँ। मत पूछो मैं कभी-कभी कितना तनहा हो जाता हूँ। लाखों का मेला हो लगा पर ख़ुद में ही खो जाता हूँ। चलता हूँ यादों के सफ़र में मीलों तक आँखें मूँदे- उठता हूँ मैं बेहोशी से फिर बेसुध हो जाता हूँ। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #तनहा