नोचोगे मेरे जिस्म को वस्त्र तार तार कर दो गे तुम मेरे सुन्दर मुखड़े को चांद सा दाग़ दार कर दो गे कहां तो कसम खाते हों मेरी पवित्रता की जो मांग लिया थोड़ा सा हक़ तुम ही मुझे अपनी ज़िन्दगी से बेदखल कर दो गे कहां जीती है औरत अपने लिए कहां उसकी पहचान होती है औरत तो जन्म से किसी और के घर की शान होती है तड़पती हैं औरों के लिए अपने ही दुःख से अनजान होती है ,,,,,, सुरेन्द्र लोहोट 02/05/2022 ©surender kumar Sudha Tripathi