मिट्टी का वो घर कितना सुकून था उसका एक आगंन भी था कुछ रिश्ते थे मिठे मिठे से एक पहचान भी था गुजरते लमहों मैं कुछ खोया खोया लगता है जहां रिश्ते बिखरे पडे हैं पहचान खोया है मिट्टी का वो घर अब महल दिखता है तस्वीरों ने कब रगं बदला या तकदीरों ने अपना मन बदला बदला भी है एक पन्ना जिनदगी का चलो उन लमहों से पुछ लेते हैं क्यु अब सबकुछ बेजान सा लगता है मिट्टी का वो घर कितना सुकून था उसका एक आगंन भी था कुछ रिश्ते थे मिठे मिठे से एक पहचान भी था । ©Tafizul Sambalpuri #GoodMorning Irfan Saeed Writer Dr. Sakshi SANA@