देखती हूँ सपने इस उम्मीद से,करूँगी मुकम्मल एक दिन जरूर बढ़ती हूँ आगे कदम बढ़ाते हुए,देखती नही मुड़कर पीछे कभी कई बार होती है मंजिल मुश्किल,कई बार कट जाता है सफर यूँ ही लेकिन मिलता है सीखने को अपार,बनते हैं दोस्त नए, बनते हैं रिश्ते नए निभाता है कोई साथ मंजिल तक,तो कोई छोड़ देता है साथ बीच राह में फिर भी मानती नही हार जीवन के सफर में,चलती हूँ आगे, बढ़ाती हूँ कदम मुस्कुराकर होगी सफल सपनों की यात्रा इस उम्मीद से,मिलेंगे काँटे हजार क्यों ड़र जाऊँ इस बात से कहती हूँ खुद से यही बात ज़िंदगी में बार-बार,देखती हूँ सपने इस उम्मीद से करूँगी मुकम्मल एक दिन जरूर ©पूर्वार्थ #सपने_देखना_जरूरी_है