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*पहाड़ी लड़की* ज़हन में बसी है मेरे एक प्यारी सी

*पहाड़ी लड़की* 

ज़हन में बसी है मेरे एक प्यारी सी लड़की,
अक्सर याद आती है मुझे, वो पहाड़ी लड़की।  

पहली दफ़ा उदास था मन मेरा जाते वक्त, उसके शहर से , 
उसकी वज़ह थी शायद, वो पहाड़ी लड़की । 
एक वक्त तक तो अनजान थे हम एक दूजे से, 
चंद मुलाक़ातों में अपनो सी लगी , वो पहाड़ी लड़की। 

कैसा होगा हमसफर तुम्हारा, पूछता है ज़माना मुझसे,
उनके सारे सवालों का जवाब है, वो पहाड़ी लड़की।  
पढ़ने की कोशिशों में हूं जिसे, एक बंद किताब है, वो पहाड़ी लड़की। 
भुला नहीं सकता उम्रभर जिसे, एक खूबसूरत एहसास है, वो पहाड़ी लड़की।

लगा के काजल आंखों में निकलती है सर-ए-बाज़ार, 
कर देती है कड़ी दोपहर में में शाम, वो पहाड़ी लड़की। 
उसके नाम सी ही "शीतलता" है उसके लहज़े में , 
लब होते है खामोश, सिर्फ़ निगाहों से बात करती है, वो पहाड़ी लड़की। 

सुना है छुप जाता है चांद भी उसे देखकर बादलों में, 
जब बन संवर के घर से निकलती है, वो पहाड़ी लड़की। 
पंछी भी शांत होकर सुनते हैं उसे , 
जब गीत कोई गुनगुनाती है वो पहाड़ी लड़की। 

झील सी गहराई है उसकी उन आँखों में , 
ख़ुद में शहर की सारी वादियां समेटे है, वो पहाड़ी लड़की।
बरस पड़ती है जमकर अक्सर काली घटाएं, 
जुल्फें जब हवा में लहराती है, वो पहाड़ी लड़की। 

सुना है वो पलके झुकाए तो शाम, उठाए तो सुबह , 
ख़ुद में सारी कायनात समेटे है , वो पहाड़ी लड़की l
शायर हूं अदना सा मैं, क्या ही लिख सकता था , 
ख़ुद खुदा ने लिखा जिसे, एक खूबसूरत ग़ज़ल है , वो पहाड़ी लड़की। 

लोग पूछते हैं अक्सर उसके शहर को ना छोड़ पाने का सबब "शमी", 
हर पहर खींचती है मुझे अपनी तरफ, वो पहाड़ी लड़की।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
  #पहाड़ी_लड़की 💚