क्यों तुम जलते रहे गलते रहे बहते रहे? क्यों तुम अपने जीवन की बलि जगत क़ो किश्तो में देते रहे? और ये भी तो सोचो उसके बदले तुम्हे मिला क्या?? अपमान के ताप.. हिंसक प्रहार.. असहनीय वेदना के अभिशाप......... जीवन की झर्जर. हो चुकी सीड़ी के अंतिम पाय दान पर बैठ कर अब तुम चिंतन कर. रहे हो और अपने बलिदानो का इतिहास लिख रहे हो पर बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर. कभी लौटने वाला नही ये बात शायद तुम जानते नही हो ? ©Parasram Arora बलिदान....