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अवसाद को स्वीकारना ही आध्यात्म है इससे घबराना, घब

अवसाद को स्वीकारना ही आध्यात्म है 
इससे घबराना, घबरा कर लोग ढूंढना, रिश्ते बनाना
यही बंधन है
बंधन, कभी खुशी, कभी घुटन, कभी उत्सव, कभी स्मृति है
खुशी, घुटन, उत्सव, स्मृति ये सब छलावे हैं 
छलावे नश्वर हैं 
और नश्वर हैं सारे प्रयास 

नश्वर हैं सारे प्रयास
प्रयास प्रसिद्धि के, दायित्वों के निर्वहन के, अर्थोपर्जन के
सारे प्रयास थकान हैं
और थकान से मुक्ति का एक मात्र तरीका है
अपने अवसाद को स्वीकारना 
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अवसाद को स्वीकारना मुक्ति का मार्ग है 
पर इस मार्ग को मुश्किल बना देती हैं  'आशा' और 'प्रेरणा'
आशा कि 'पराजय' और 'अवसाद' क्षणिक हैं, 
प्रेरणा कि तिमिर के उस पार कोई शाश्वत प्रकाश है,
आशा भ्रम है
और प्रेरणा है अपने अवसाद को स्वीकार न कर पाने वाले कमजोर कायरों की कविता 

प्रेरणा कविता है 
और ये कविता लाती है
पैसा, प्रसिद्धि, रिश्ते, गर्व इत्यादि अन्य संसारिकताएं 
सांसारिकता मोह है
मोह है मुक्ति का सनातन बैरी 
किंतु मुक्ति किस्से ? संसार से ?
क्या हम स्वयं संसार नही ?
तो स्वयं से और संसार से मुक्ति का उपाय क्या ?
उपाय है ये देख पाना कि :
संसार संधान है और मुक्ति साध्य ।
इस देख पाने के मार्ग में  बाधक हैं,
सारी प्रेरणाएं, सारी आशायें, सारे प्रयास
जिनसे जन्म लेती है तृष्णा, भटकन और बन्धन 
प्रेरणा, आशा, प्रयास, तृष्णा, भटकन और बंधनों का गिर जाना ही है अवसाद
सो अवसाद ही मुक्ति है 
अवसाद को स्वीकारना है स्वीकारना इस तथ्य को
कि हम मुक्त हैं।

©Manaswin Manu
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