उस तरफ जिस तरफ स्वच्छ अनिल बहते हो नेह सुमन सुरभित को,न छेड़ते हो जिस तरफ। हरियाली सम्पन्न हो जगत,कलकल करती हुई सरिता। निर्वेद में विचरण करते पक्षी,कोई बाज न हो जिस तरफ। मुखरित हो देते राय सभी,जन कल्याण सुमंत का। गरीब अमीर में भेद नहीं,मिले दिल जिस तरफ। भाई के संग भाई खड़े हो।मात खाते होंगे कुटिल, सभी के होते होंगे मुराद पूरीस्नेह गले मिले जिस तरफ । न करते हो कोई वहां,मर्यादा को मलिन जहां। कोई बेटी की सुन पुकारमदद को आए जिस तरफ। संस्कार पर न उठे ऊंगली,गर्व करते हो हर मां बाप। है जहां बेटा सुकुमार,आदर मिले जिस तरफ। उस तरफ जिस तरफ स्वच्छ अनिल बहते हो नेह सुमन सुरभित को, न छेड़ते हो जिस तरफ। हरियाली सम्पन्न हो जगत, कलकल करती हुई सरिता। निर्वेद में विचरण करते पक्षी,