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विधा - गीतिका ::शीर्षक "ज़िन्दगी" •••••••••••••••••

विधा - गीतिका ::शीर्षक "ज़िन्दगी"
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
1-
जीवन में जिसने किए, सही समय सब काम।
अमर उसी का हो गया, इस  दुनिया में  नाम।।
2-
सुखमय जीवन के लिए, तन-मन रखिए स्वस्थ।
आवश्यक  है  इसलिए,  सुबह-शाम  व्यायाम।।
3-
आवश्यक  जो  कार्य  हैं, उनको  करें  तुरंत।
पता नहीं हो कब कहाँ, इस जीवन की शाम।।
4-
मानव  जन्म  अमोल  है,  मिले  न  बारम्बार।
जीवन है दिन चार का, लम्बित कार्य तमाम।।
5-
समय न व्यर्थ गँवाइए, पाना है यदि लक्ष्य।
इसीलिए यह प्रण करें,  है  आराम  हराम।।
6-
देवों को  दुर्लभ  रहा, मानव का यह जन्म।
ईश्वर  के  अवतार  थे, पुरुषोत्तम  श्रीराम।।
7-
जब तक है यह ज़िन्दगी, कर लीजे सद्कर्म।
प्राण निकलने पर किसी, काम न आना चाम।।
8
जीवन जीने का रहा, जिसका  जैसा  ढंग।
देती  है  यह  ज़िन्दगी, वैसा  ही  परिणाम।।
9-
कभी  लगे   रंगीन  यह,  कभी  लगे  बदरंग।
विविधा है यह ज़िन्दगी, लिए विविध आयाम।।
10-
कभी  कष्टकारी  लगे, कभी लगे सुनसान।
कभी लगे यह ज़िन्दगी, सुख के चारों धाम।।
11-
जिन लोगों की ज़िन्दगी, रहती खुली किताब।
उनको ही अक्सर सभी, करते नमन् प्रणाम।।
12-
जीवनभर कुछ व्यक्ति जो, रहते हैं संदिग्ध।
मनोविकारी  लोग  वह,  मलते  झंडू  बाम।।

#हरिओम श्रीवास्तव#

©Hariom Shrivastava #guru
विधा - गीतिका ::शीर्षक "ज़िन्दगी"
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1-
जीवन में जिसने किए, सही समय सब काम।
अमर उसी का हो गया, इस  दुनिया में  नाम।।
2-
सुखमय जीवन के लिए, तन-मन रखिए स्वस्थ।
आवश्यक  है  इसलिए,  सुबह-शाम  व्यायाम।।
3-
आवश्यक  जो  कार्य  हैं, उनको  करें  तुरंत।
पता नहीं हो कब कहाँ, इस जीवन की शाम।।
4-
मानव  जन्म  अमोल  है,  मिले  न  बारम्बार।
जीवन है दिन चार का, लम्बित कार्य तमाम।।
5-
समय न व्यर्थ गँवाइए, पाना है यदि लक्ष्य।
इसीलिए यह प्रण करें,  है  आराम  हराम।।
6-
देवों को  दुर्लभ  रहा, मानव का यह जन्म।
ईश्वर  के  अवतार  थे, पुरुषोत्तम  श्रीराम।।
7-
जब तक है यह ज़िन्दगी, कर लीजे सद्कर्म।
प्राण निकलने पर किसी, काम न आना चाम।।
8
जीवन जीने का रहा, जिसका  जैसा  ढंग।
देती  है  यह  ज़िन्दगी, वैसा  ही  परिणाम।।
9-
कभी  लगे   रंगीन  यह,  कभी  लगे  बदरंग।
विविधा है यह ज़िन्दगी, लिए विविध आयाम।।
10-
कभी  कष्टकारी  लगे, कभी लगे सुनसान।
कभी लगे यह ज़िन्दगी, सुख के चारों धाम।।
11-
जिन लोगों की ज़िन्दगी, रहती खुली किताब।
उनको ही अक्सर सभी, करते नमन् प्रणाम।।
12-
जीवनभर कुछ व्यक्ति जो, रहते हैं संदिग्ध।
मनोविकारी  लोग  वह,  मलते  झंडू  बाम।।

#हरिओम श्रीवास्तव#

©Hariom Shrivastava #guru