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◆◆ बारिश, यादें ◆◆ कुछ नही बहुत वक्त बीत गया है म

◆◆ बारिश, यादें ◆◆

कुछ नही बहुत वक्त बीत गया है मिले हमको
वो खुश्क, सूखा मगर तृप्त लम्हा
आज बरसती बूँदों में भी प्यासा वक्त।

एक वो शाम थी जो सन्दल सी महक रही थी
आज वही खुशबू फिर साँसों में आई थी।

हम बच रहे थे बारिश से
और अपनी नजरों से भी।
पर न बारिश रुकी, न मेरी नजरें 
एक दफा फिर उसकी खुली जुल्फें
जो कभी बंधी रहती थी...को देखने के लिए मुड़ा तो लाल डोरों वाली उसकी आँखों में मेरी आँखें बंध गयीं।

उसके अधरों पर तनी औपचारिकता की फीकी लकीर, मेरे रुखसारों पर असर कर गयी।

कई अच्छे सवाल थे जेहन में उसे झकझोरने वाले
पर पूछा कि- "परफ्यूम अब तक वही है?"

"हम्म...पसन्द था मुझे तो नही बदला"
और तुम?..."मैं भी" मैं हँस दिया।

"तो! तुम बिल्कुल नही बदले?"
तुम जो बदल गयी।
"हम मजबूर थे।"
"नही तुम सिर्फ तुम!"

वो चुप रह गयी
"तो तुम सचमुच नही बदले?"

न मैं रवायतों सा हो गया
तुम मौसम बन गयी।

क्यों? मैंने उसे देखा, उसने नजर सामने बूंदों पर टिका रखी थी।
क्योंकि! मेरा इश्क ठहर गया है, और वहीं पे मैं भी।

"इश्क कभी ठहरता है भला?"

हाँ उम्मीदों में ठहरता है
मुलाकात की धुँधली यादों में
मटमैले पन्नों की साफ लिखावटों में
सूखे हुए फूलों में जो उन्ही पन्नों में अब तक कैद है, 
पिछली शमाओं के निशानी में जिनकी रोशनी के उस पार तुम बैठा करती थी।

वो सब अब तक बिखरे हैं राहों में
"और तुम?"
मैं आखिरी मुलाकात से खुद को घसीट लाया हूँ।

"तो उन लम्हों को क्यों नही साथ लाये चुनकर?"
तुम्हारे लिए...ताकि! मौसम अपना चक्र पूरा करे तो तुम्हे मुझे ढूँढने में मुश्किल न आये।

वो चुप थी और बूँदें भी
उठकर जाने से पहले उसने मुड़कर फिर कहा-
"सचमुच तुम नही बदले।।"
        -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #raindrops  प्यार पर कविता
◆◆ बारिश, यादें ◆◆

कुछ नही बहुत वक्त बीत गया है मिले हमको
वो खुश्क, सूखा मगर तृप्त लम्हा
आज बरसती बूँदों में भी प्यासा वक्त।

एक वो शाम थी जो सन्दल सी महक रही थी
आज वही खुशबू फिर साँसों में आई थी।

हम बच रहे थे बारिश से
और अपनी नजरों से भी।
पर न बारिश रुकी, न मेरी नजरें 
एक दफा फिर उसकी खुली जुल्फें
जो कभी बंधी रहती थी...को देखने के लिए मुड़ा तो लाल डोरों वाली उसकी आँखों में मेरी आँखें बंध गयीं।

उसके अधरों पर तनी औपचारिकता की फीकी लकीर, मेरे रुखसारों पर असर कर गयी।

कई अच्छे सवाल थे जेहन में उसे झकझोरने वाले
पर पूछा कि- "परफ्यूम अब तक वही है?"

"हम्म...पसन्द था मुझे तो नही बदला"
और तुम?..."मैं भी" मैं हँस दिया।

"तो! तुम बिल्कुल नही बदले?"
तुम जो बदल गयी।
"हम मजबूर थे।"
"नही तुम सिर्फ तुम!"

वो चुप रह गयी
"तो तुम सचमुच नही बदले?"

न मैं रवायतों सा हो गया
तुम मौसम बन गयी।

क्यों? मैंने उसे देखा, उसने नजर सामने बूंदों पर टिका रखी थी।
क्योंकि! मेरा इश्क ठहर गया है, और वहीं पे मैं भी।

"इश्क कभी ठहरता है भला?"

हाँ उम्मीदों में ठहरता है
मुलाकात की धुँधली यादों में
मटमैले पन्नों की साफ लिखावटों में
सूखे हुए फूलों में जो उन्ही पन्नों में अब तक कैद है, 
पिछली शमाओं के निशानी में जिनकी रोशनी के उस पार तुम बैठा करती थी।

वो सब अब तक बिखरे हैं राहों में
"और तुम?"
मैं आखिरी मुलाकात से खुद को घसीट लाया हूँ।

"तो उन लम्हों को क्यों नही साथ लाये चुनकर?"
तुम्हारे लिए...ताकि! मौसम अपना चक्र पूरा करे तो तुम्हे मुझे ढूँढने में मुश्किल न आये।

वो चुप थी और बूँदें भी
उठकर जाने से पहले उसने मुड़कर फिर कहा-
"सचमुच तुम नही बदले।।"
        -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #raindrops  प्यार पर कविता