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फिरते हैं कब से दर–ब–दर अब इस नगर अब उस नगर एक दूस

फिरते हैं कब से दर–ब–दर अब इस नगर अब उस नगर
एक दूसरे के हमसफ़र मैं और मेरी आवारगी
ना आशना हर रहगुज़र ना मेहरबाँ है एक नज़र
जायें तो अब जायें किधर मैं और मेरी आवारगी

हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बर्बाद थे
बेफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर थे दिलशाद थे
वो चाल ऐसी चल गया हम बुझ गये दिल जल गया
निकले जला के अपना घर मैं और मेरी आवारगी

ये दिल ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गया
कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गया
जब कह कर वो दिलबर गया तेरे लिए मैं मर गया
रोते हैं उस को रात भर मैं और मेरी आवारगी

©Rahul Bhardwaj
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