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मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता, नई ज़मीन न

मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता,
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता ।

नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए,
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता ।

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा,
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता ।

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे,
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता ।

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ,
यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता ।

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में,
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता । नमन कैफ़ी आज़मी साहब !!
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता,
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता ।

नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए,
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता ।

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा,
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता ।

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे,
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता ।

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ,
यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता ।

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में,
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता । नमन कैफ़ी आज़मी साहब !!
blparas9640

B.L. Paras

New Creator

नमन कैफ़ी आज़मी साहब !! #शायरी