Love #ग़ज़ल_غزل: २५५ (१२२२-१२२२-१२२२-१२२२) ----------------------------------------- तेरे सादा सिफ़त चेहरे में यूँ ज़ेबाई रहती है कि जैसे दूध के अंदर छिपी चिकनाई रहती है //१ तुम्हें जो देख लेता हूँ मैं अपने मन की आँखों से तो पूरी रात मेरी ख़ुद ब ख़ुद गरमाई रहती है //२ अमीरों की इमारत से निकाली जा चुकी है वो सुना है झोपड़ी में आजकल सच्चाई रहती है //३ बँटा है मुल्क पर अब भी ये सच है पार सरहद के किसी की दूर की मौसी, किसी की ताई रहती है //४ न जाने किसने तोड़ा है ग़ज़ल का दिल कि क्या बोलूँ वो मेरे पास आकर भी बहुत उकताई रहती है //५ बहुत हस्सास होकर पेश आना 'राज़' तुम उससे मिलन की रात हर लड़की बहुत घबराई रहती है //६ #राज़_नवादवी©