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कभी-कभी यादें, उसके घर के चक्कर काटती हैं। उसके हो

कभी-कभी यादें,
उसके घर के चक्कर काटती हैं।
उसके होने की आहट टटोलती हैं,
जानती हैं, 
अब वो वहाँ नहीं रहते,
फिर भी,
जाने किस उम्मीद में,
आज भी नज़रें,
उनकी,
रहगुज़र ताकती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #रहगुज़र #याद 
कभी-कभी यादें,
उसके घर के चक्कर काटती हैं।
उसके होने की आहट टटोलती हैं,
जानती हैं, 
अब वो वहाँ नहीं रहते,
फिर भी,
जाने किस उम्मीद में,
कभी-कभी यादें,
उसके घर के चक्कर काटती हैं।
उसके होने की आहट टटोलती हैं,
जानती हैं, 
अब वो वहाँ नहीं रहते,
फिर भी,
जाने किस उम्मीद में,
आज भी नज़रें,
उनकी,
रहगुज़र ताकती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #रहगुज़र #याद 
कभी-कभी यादें,
उसके घर के चक्कर काटती हैं।
उसके होने की आहट टटोलती हैं,
जानती हैं, 
अब वो वहाँ नहीं रहते,
फिर भी,
जाने किस उम्मीद में,