उम्मीदों के धागों से(कविता) उम्मीदों के धागों से सीला है, मैंने जीवन का हर पल। उगते सूरज को सुईं बनाकर, सपनों को जोड़ा है हर पल। दिन को ढलते ढलते, मैं कहीं दूर निकल जाता हूँ। क्योंकि किसी के टूटे विश्वास को, मैंने फिर से जोड़ा है हर पल। पथ पर चलते चलते, न जाने कितने किस्से बन गए। मग़र हर किस्से के पहलू को, मैंने नये किरदार से जोड़ा है हर पल। पंछियों की वो चहचहाट, सुबह और शाम का भान कराती है। क्योंकि हर डूबती शाम को, मैंने अपनों के साथ जोड़ा है हर पल। #उम्मीदों_के_धागे_से //sweta_dankhara_11// Ms.(P.✍️Gurjar)