है मंज़ूर हमको जो चाहे सज़ा दो मगर इल्तिज़ा है ख़ता तो बता दो ज़रा ज़ुल्फ़ अपनी हवा में उड़ा दो दिलों पर मुहब्बत के सावन लुटा दो हमें तीरगी रास आती नहीं है कहाँ छुप गए हो झलक तो दिखा दो यही ज़ख़्म भरने की सूरत हो शायद दवा हो चुकी हो सके तो दुआ दो हमें हिज़्र में नींद आती नहीं है ज़रा हाल अपना भी हमको सुना दो अगर चाँद बनने के क़ाबिल नहीं हैं फ़लक का सितारा ही हमको बना दो है ये आग जंगल की फैले न देखो न भूले से तुम नफरतों को हवा दो ©पल्लवी मिश्रा, दिल्ली। #RDV19 #ghazal #ग़ज़ल #पल्लवीमिश्रा