Nojoto: Largest Storytelling Platform

मिले जो' तुम तो' प्रीत की, बयार गुनगुना उठी । यों'

मिले जो' तुम तो' प्रीत की, बयार गुनगुना उठी ।
यों' रोम-रोम खिल उठे, नजर-नजर लजा उठी ।

हजार स्वप्न जी उठे, हजार मौन गा उठे ।
अगेय छंद हो गये, अजेय पंथ पा उठे ।

गए तो श्वांस-श्वांस में, अचेतना बिखर गयी । 
जिसे न खो सका कभी, वो' वेदना भी' मर गयी ।

प्रशस्ति जीव तत्व की, स्वयं को' ही जला उठी ।
असंख्य मौन रो उठे, नजर भी' डबडबा उठी ।

अमर्त्य भाव जीव का जगा, प्रसून धुल गये ।
यों पाँखुरी स्वरुप में, त्रिनेत्र सुप्त खुल गए ।

न जीत कुछ न हार कुछ, हृदय में निर्विवाद है ।
समस्त लोक आज भी, प्रिये तुम्हारे' बाद है ।

©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
  #प्रिये_तुम्हारे_बाद_है #पञ्चचामर_छंद #कविता

प्रिये_तुम्हारे_बाद_है पञ्चचामर_छंद कविता

757 Views