जननी हूं मैं इस जहां की ,फिर भी मेरी पहचान नहीं!
मेरी ही संतान के पीछे ,मेरा ही नाम नहीं??
माना के दुर्गा चंडी काली हूं ,
मैं खुद अपनी पहचान बनाऊंगी।
पर इस मर्द प्रधान समाज से मैं कब तक लड़ पाऊंगी।
सबर धैर्य ममता की भी तो एक मूर्ति हूं,
सिर्फ चंडी बनकर लड़ते रहना ही तो मेरा काम नहीं।