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11 सितम्बर 1857 का दिन था जब #बिठूर में एक पेड़ से

11 सितम्बर 1857 का दिन था जब #बिठूर में एक पेड़ से बंधी तेरह वर्ष की लड़की को ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले किया, धूँ धूँ कर जलती वो लड़की उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई राख में तब्दील हो गई|

ये लड़की थी #नाना_साहब_पेशवा की दत्तक पुत्री जिसका नाम था #मैना_कुमारी जिसे 160 वर्ष पूर्व  आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था|

जिसने 1857 क्रांति के दौरान अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया की कही उसकी सुरक्षा के चलते उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आये और बिठूर के महल में रहना उचित समझा|

#नाना_साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी और जैसे ही उन्हें पता चला #नाना_साहब महल से बाहर है ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस #मैना_कुमारी ही मिली|

#मैना_कुमारी ब्रटिश सैनिको को देख कर महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी, ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने महल को तोप से उड़ने का आदेश दिया और ऐसा कर वो वहां से चला गया पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया|

रात को #मैना को जब लगा की सब लोग जा चुके है और वो बहार निकली तो दो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और फिर आउटरम के सामने पेश किया आउटरम ने पहले #मैना को एक पेड़ से बंधा फिर #मैना से #नाना_साहब के बारे में और #क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही पर उस से मुँह नही खोला|

यहाँ तक की आउटरम ने #मैना_कुमारी को जिंदा जलाने की धमकी भी दी, पर उसने कहा की "वो एक क्रांतिकारी की बेटी है मृत्यु से नही डरती" ये देख आउटरम तिलमिला गया और उसने #मैना_कुमारी को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया, इस पर भी #मैना_कुमारी बिना प्रतिरोध के आग में जल गई ताकि क्रांति की मशाल कभी न बुझे|

"बिना खड्ग बिना ढाल" वाली गैंग या धूर्त वामपंथी लेखक चाहे जो लिखें, पर हमारी स्वतंत्रता इन जैसे असँख्य #क्रांतिवीर और #वीरांगनाओं के बलिदानों का ही प्रतिफल है और इनकी गाथाएँ आगे की पीढ़ी तक पहुँचनी चाहिए| 

इन्हें हर कृतज्ञ भारतीय का नमन पहुँचना चाहिये|
 आज उसी वीरांगना के नाम पर *कानपुर नगर* से , पेशवाओं की नगरी *बिठूर* तक जाने वाले मार्ग को "मैनावती मार्ग" कहते हैं।

शत शत नमन है इस महान बाल वीरांगना को ।| 🙏🙏

©Santosh Kumar
  #walkalone