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ओंधी नींद में एक ख़्वाब टटोलता जैसे एक चुंबन तेरे

ओंधी नींद में एक ख़्वाब टटोलता जैसे एक चुंबन तेरे माथे को चूमने को अंगड़ाईं ले रही, शोर दरवाज़े खटखटाती बिस्तर पे पड़े तेरे ख़्वाब को मुझसे दूर करने को, कि खिड़कियों से सुबह की धूप छनती, जैसे चूल्हे पे चढ़ी चाय के लिए पतीले से छन छन की आवाज़ करती गुनगुने पानी, जैसे कोई चीख चीख कर कह रहा हो, कि मानो अब समय आ गया, तेरी यादों की ख़्वाब से निकलने को, नींद भरी पड़ी आँखों में और पलकें अब भी भारी, कि लौट आऊँ मैं फिर से करीब तेरे, और आहिस्ता आहिस्ता तेरी घुँघराले जुल्फों को सवारूं, मेरी ऊँघती नींद, तेरी लबों को छूकर, तेरी साँसों को तब तक मेहसूस करें, जब तक ये धूप कल का एक नया सवेरा फिर से होने तक दम न तोड़ दे!

prem_nirala_ ओंधी नींद में एक ख़्वाब टटोलता जैसे एक चुंबन तेरे माथे को चूमने को अंगड़ाईं ले रही, शोर दरवाज़े खटखटाती बिस्तर पे पड़े तेरे ख़्वाब को मुझसे दूर करने को, कि खिड़कियों से सुबह की धूप छनती, जैसे चूल्हे पे चढ़ी चाय के लिए पतीले से छन छन की आवाज़ करती गुनगुने पानी, जैसे कोई चीख चीख कर कह रहा हो, कि मानो अब समय आ गया, तेरी यादों की ख़्वाब से निकलने को, नींद भरी पड़ी आँखों में और पलकें अब भी भारी, कि लौट आऊँ मैं फिर से करीब तेरे, और आहिस्ता आहिस्ता तेरी घुँघराले जुल्फों को सवारूं, मेरी ऊँघती नींद, तेरी लबों को छूकर, तेरी साँसों को तब तक मेहसूस करें, जब तक ये धूप कल का एक नया सवेरा फिर से होने तक दम न तोड़ दे!

#prem_nirala_
ओंधी नींद में एक ख़्वाब टटोलता जैसे एक चुंबन तेरे माथे को चूमने को अंगड़ाईं ले रही, शोर दरवाज़े खटखटाती बिस्तर पे पड़े तेरे ख़्वाब को मुझसे दूर करने को, कि खिड़कियों से सुबह की धूप छनती, जैसे चूल्हे पे चढ़ी चाय के लिए पतीले से छन छन की आवाज़ करती गुनगुने पानी, जैसे कोई चीख चीख कर कह रहा हो, कि मानो अब समय आ गया, तेरी यादों की ख़्वाब से निकलने को, नींद भरी पड़ी आँखों में और पलकें अब भी भारी, कि लौट आऊँ मैं फिर से करीब तेरे, और आहिस्ता आहिस्ता तेरी घुँघराले जुल्फों को सवारूं, मेरी ऊँघती नींद, तेरी लबों को छूकर, तेरी साँसों को तब तक मेहसूस करें, जब तक ये धूप कल का एक नया सवेरा फिर से होने तक दम न तोड़ दे!

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Prem Nirala

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