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स्वीकार ना होगा।। चलूं उनकी निशानी पर मुझे स्वीका

 स्वीकार ना होगा।।

चलूं उनकी निशानी पर मुझे स्वीकार ना होगा,
ये रस्ता अनवरत चलता कभी इतवार ना होगा।

ना कोई तीर ना तलवार फिर भी लड़ रहा हूँ मैं,
कहाँ है कैफ़ियत इतनी कभी फिर वार ना होगा।
 स्वीकार ना होगा।।

चलूं उनकी निशानी पर मुझे स्वीकार ना होगा,
ये रस्ता अनवरत चलता कभी इतवार ना होगा।

ना कोई तीर ना तलवार फिर भी लड़ रहा हूँ मैं,
कहाँ है कैफ़ियत इतनी कभी फिर वार ना होगा।