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मैं जब भी कोई कविता लिखता हूँ तो वे मेरे अंदर से न

मैं जब भी कोई कविता लिखता हूँ तो वे मेरे अंदर से नही उपजते बल्कि वे अक्सर मुझे सड़कों पर ,गलियों में ,लोगों के चेहरों में, लोगों के व्यवहार,क्रियाकलापों में मिलती हैं ।रोज हजारों कविताएं सड़कों पर लोगों के समांतर चलती रहती हैं । बस कोई उनको वहां से उठा कर पंक्तिबद्ध करने की जरूरत होती  है । कवि बड़ी खूबसूरती से उन्हें शब्दबद्ध करता ताकि हर किसी को वह अपनी कहानी लगे ।
   इसी तरह सैकड़ों आईडिया भी हरतरफ बिखरे रहते हैं बस उन्हें पहचानने वाली आंखें चाहिए ।एक समर्थ व्यक्ति उन्हें पहचान लेता है और उन पर काम करना शुरू कर देता है । यह काम करना शुरू कर देना ही असल में उसकी सफलता की वजह बनता है ।देख जाये तो आज कल आइडियाज और अवसरों की कोई कमी नहीं ,बस जरूरत है अपने बुद्धि और विवेक को एकाग्रचित्त करके सोचने की । ये आइडियास अक्सर तो हर व्यक्ति को दिखाई देते हैं , लेकिन वे उसी के हो जाते हैं , जो पहले लपककर उन पर काम शुरू करता है ।मैंने अक्सर कार्य स्थलों पर भी देखा है बहुत लोगों के पास कार्यस्थल पर बिखरे के आइडियाज को पहचानने की क्षमता होती है जिससे कार्य सरलीकरण में मदद मिल सकती है  मगर उनमें से भी कुछ ही लोगों के पास उसको कैज़न के रुप क्रियान्वयन करने की क्षमता होती है।

©Yashpal singh gusain badal' मैं जब भी कोई कविता लिखता हूँ तो वे मेरे अंदर से नही उपजते बल्कि वे अक्सर मुझे सड़कों पर ,गलियों में ,लोगों के चेहरों में, लोगों के व्यवहार,क्रियाकलापों में मिलती हैं ।रोज हजारों कविताएं सड़कों पर लोगों के समांतर चलती रहती हैं । बस कोई उनको वहां से उठा कर पंक्तिबद्ध करने भर की देर है । कवि बड़ी खूबसूरती से उन्हें शब्दबद्ध करता ताकि हर किसी को वह अपनी कहानी लगे ।
   इसी तरह सैकड़ों आईडिया भी हरतरफ बिखरे रहते हैं बस उन्हें पहचानने वाली आंखें चाहिए ।एक समर्थ व्यक्ति उन्हें पहचान लेता है और उन पर काम करना शुरू कर देता है । यह काम करना शुरू कर देना ही असल में उसकी सफलता की वजह बनता है ।देख जाये तो आज कल आइडियाज और अवसरों की कोई कमी नहीं ,बस जरूरत है अपने बुद्धि और विवेक को एकाग्रचित्त करके सोचने की । ये आइडियास अक्सर तो हर व्यक्ति को दिखाई देते हैं , लेकिन वे उसी के हो जाते हैं , जो पहले लपककर उन पर काम शुरू करता है ।मैंने अक्सर कार्य स्थलों पर भी देखा है बहुत लोगों के पास कार्यस्थल पर बिखरे के आइडियाज को पहचानने की क्षमता होती है जिससे कार्य सरलीकरण में मदद मिल सकती है  मगर उनमें से भी कुछ ही लोगों के पास उसको कैज़न के रुप क्रियान्वयन करने की क्षमता होती है।

#achievement  MALLIKA  Pushpvritiya  Anshu writer  Neha Tiwari कवि संतोष बड़कुर
मैं जब भी कोई कविता लिखता हूँ तो वे मेरे अंदर से नही उपजते बल्कि वे अक्सर मुझे सड़कों पर ,गलियों में ,लोगों के चेहरों में, लोगों के व्यवहार,क्रियाकलापों में मिलती हैं ।रोज हजारों कविताएं सड़कों पर लोगों के समांतर चलती रहती हैं । बस कोई उनको वहां से उठा कर पंक्तिबद्ध करने की जरूरत होती  है । कवि बड़ी खूबसूरती से उन्हें शब्दबद्ध करता ताकि हर किसी को वह अपनी कहानी लगे ।
   इसी तरह सैकड़ों आईडिया भी हरतरफ बिखरे रहते हैं बस उन्हें पहचानने वाली आंखें चाहिए ।एक समर्थ व्यक्ति उन्हें पहचान लेता है और उन पर काम करना शुरू कर देता है । यह काम करना शुरू कर देना ही असल में उसकी सफलता की वजह बनता है ।देख जाये तो आज कल आइडियाज और अवसरों की कोई कमी नहीं ,बस जरूरत है अपने बुद्धि और विवेक को एकाग्रचित्त करके सोचने की । ये आइडियास अक्सर तो हर व्यक्ति को दिखाई देते हैं , लेकिन वे उसी के हो जाते हैं , जो पहले लपककर उन पर काम शुरू करता है ।मैंने अक्सर कार्य स्थलों पर भी देखा है बहुत लोगों के पास कार्यस्थल पर बिखरे के आइडियाज को पहचानने की क्षमता होती है जिससे कार्य सरलीकरण में मदद मिल सकती है  मगर उनमें से भी कुछ ही लोगों के पास उसको कैज़न के रुप क्रियान्वयन करने की क्षमता होती है।

©Yashpal singh gusain badal' मैं जब भी कोई कविता लिखता हूँ तो वे मेरे अंदर से नही उपजते बल्कि वे अक्सर मुझे सड़कों पर ,गलियों में ,लोगों के चेहरों में, लोगों के व्यवहार,क्रियाकलापों में मिलती हैं ।रोज हजारों कविताएं सड़कों पर लोगों के समांतर चलती रहती हैं । बस कोई उनको वहां से उठा कर पंक्तिबद्ध करने भर की देर है । कवि बड़ी खूबसूरती से उन्हें शब्दबद्ध करता ताकि हर किसी को वह अपनी कहानी लगे ।
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