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मैं ठेका मजदूर हूँ।। मैं ठेका मजदूर आज ये कहने क



मैं ठेका मजदूर हूँ।।
मैं ठेका मजदूर आज ये कहने को मजबूर हूँ।
अपने हक से वंचित हूँ और मानवता से दूर हूँ।।
मैं ठेका मजदूर हूँ।।

मुझको जैसा कहा जाय मैं वैसा करता।
सुबह, दोपहर, शाम, रात जब जैसा करता।
इतने पर भी जब - जब मेरा वेतन आता।
पूरा देकर फिर आधा मालिक ले जाता।
मैं यदि होकर जरा मुखर आवाज उठाऊँ।
तब जो कुछ पा जाता हूँ वह भी ना पाऊँ।
इसी तरह जो मिल जाता, वो लेने को मजबूर हूँ।
मैं ठेका मजदूर हूँ।।

मेरी खातिर सरकारों ने नीति बनायीं।
लेकिन कोई नीति धरा पर कभी न आयी।
मजदूरों के नेता हों, या राजविधि के।
अधिकारी हों या हों कोई न्याय विधि के।
सबने अपने काम किये होंगे कागज में।
लेकिन मुझ तक पहुँच न आयी कोई सहज में।
मर जाने पर, मैं मालिक के परिचय से भी दूर हूँ।
मैं ठेका मजदूर हूँ।।

मेरे श्रम की एक - एक जो पाई होती।
उस पर मेरे नस - नस की तुरपाई होती।
उसको भी मुझसे ठगकर खा जाने वाले।
उनकी खातिर दुआ उन्हें भगवान बचा ले।
मेरी या मेरे जैसों को और न कुछ दो।
हे मालिक, बस हमें हमारा हक ही दे दो।
मैं बस अपना हक लेकर ही, हर सुख से भरपूर हूँ।
मैं ठेका मजदूर हूँ।।
                      ..........कौशल तिवारी

©Kaushal Kumar
  #मैंठेकामजदूरहूँ