इस रंग भूमि के खुले मंच पर हर कोई अपने मन भावना को ढूंढ़ने मे लगा है अपनी पीड़ा को छुपाने मे कितने सक्षम है हम इसका आभास हमारी खोखली हंसी मे साफ नज़र आता है हा कभी मिल जाती है सुख की शीतल. छाँव अनजाने मे लेकिन दुख की तीखी धूप तो सदा तपाती रहती है तन को मन को कभी लगता है अमावस जीवन की पीगई है चाँदनी रातो की स्निग्ध रौशनी को शुक्र है परमात्मा ने आयु की सीमाएं निर्धारित कर रखी है वरना पता नहीं क्या होता परिणाम इस अवसादग्रस्त अर्थहीन जीवन का #St एक अर्थ हीन जीवन.........