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Unsplash कतरा-कतरा हूँ मैं बिखरा फिर भी थोड़ा-थोड़

Unsplash कतरा-कतरा हूँ  मैं बिखरा 
फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा 

पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत
कतरन का निरर्थक टुकड़ा 

चहल-पहल सब दूर खड़ी 
भूल गया अन्तर्मन खिलना 

अगर-मगर से हूँ छला मैं 
भूला-भूला खुद से कहना

ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा 
टूटना, बिखरना फिर जुड़ना 

पहरों पहर चलना पड़े बेशक
भटक कर सही वक्त रुकना

©सुरेश सारस्वत #Book  shayari in hindi
Unsplash कतरा-कतरा हूँ  मैं बिखरा 
फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा 

पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत
कतरन का निरर्थक टुकड़ा 

चहल-पहल सब दूर खड़ी 
भूल गया अन्तर्मन खिलना 

अगर-मगर से हूँ छला मैं 
भूला-भूला खुद से कहना

ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा 
टूटना, बिखरना फिर जुड़ना 

पहरों पहर चलना पड़े बेशक
भटक कर सही वक्त रुकना

©सुरेश सारस्वत #Book  shayari in hindi