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भिक्षा कोई माँगता मजबूरी में कोई शौक से माँगे कोई

भिक्षा
कोई माँगता मजबूरी में
कोई शौक से माँगे
कोई हाथ फैलाये तो
कोई करे कटोरा आगे

कोई चौराहे पर बैठ माँगता
कोई माँगता घर घर
कोई पहने है फटे वस्त्र तो
कोई पहने है खद्दर

कोई अंधा लूला लँगड़ा है
कोई सही सलामत
कोई जबरन करे बसूली
कोई करे खुशामद

कोई पढ़ा लिखा है उनमें
बिल्कुल कोई निरक्षर 
कड़ी धूप में कोई घूमें
कोई खीले दफ्तर

कोई भागता है मेहनत से
बना लिया है धंधा
कोई कहता इसे दक्षिणा
कोई कहता कहता है चंदा

बेखुद सोच समझ कर देना
सही व्यक्ति को भिक्षा
किसे भीख देना है हमको
पहले करें समीक्षा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #भीख
भिक्षा
कोई माँगता मजबूरी में
कोई शौक से माँगे
कोई हाथ फैलाये तो
कोई करे कटोरा आगे

कोई चौराहे पर बैठ माँगता
कोई माँगता घर घर
कोई पहने है फटे वस्त्र तो
कोई पहने है खद्दर

कोई अंधा लूला लँगड़ा है
कोई सही सलामत
कोई जबरन करे बसूली
कोई करे खुशामद

कोई पढ़ा लिखा है उनमें
बिल्कुल कोई निरक्षर 
कड़ी धूप में कोई घूमें
कोई खीले दफ्तर

कोई भागता है मेहनत से
बना लिया है धंधा
कोई कहता इसे दक्षिणा
कोई कहता कहता है चंदा

बेखुद सोच समझ कर देना
सही व्यक्ति को भिक्षा
किसे भीख देना है हमको
पहले करें समीक्षा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #भीख