यू भी शहर बीमार पड़ा है कुछ तो रहम करो होठो को तकल्लुफ़ दो मिसरे को घोलो तुम्हारा मुस्कुराना अच्छा लगता है मरीज -ए - आशिक का हाल बहल जाए लब से जुगनू गिराओ चाँद को रुख पर सजाओ तुम्हारा कातिल रुखसार अच्छा लगता है कौन मनेगा मैंने कभी तुम्हें खुली आँखों से देखा नही उफ्फ! हकीकत पर्दा मे उन्स करता है नजदीक ना आओ, प्रेम की धीमी - धीमी लौ जलाओ,मुझे ख़्वाब मे भी पागल बनाओ अच्छा लगता है ©चाँदनी #freebird