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गुस्से का सारा छींका.मुझ पर वो फोड़ देते है , हाथ

गुस्से का सारा छींका.मुझ पर वो फोड़ देते है ,
हाथ पकड़ूं मैं जरा सा..वो ऊंगली मरोड़ देते हैं ।
हर बार ही दिल मेरा वो.इस तरह से तोड़ देते है ,
जैसे कि चाय पीकर लोग.कुल्हड़ को फोड़ देते हैं ।
रिश्तों को आजकल सब..इस तरह से तोड़ देते हैं ,
गांठ रखते हैं संभाले.धागों को छोड़ देते हैं ।
अपने ही आजकल क्यों.अपनों को छोड़ देते हैं ,
सहूलियत के हिसाब से ही.रिश्ते मरोड़ लेते हैं।
कुछ गैर लोग घर में घुसकर.बातों को मोड़ देते हैं,
नोंक-झोंक थी मीठी-मीठी..वो नींबू निचोड़ देते हैं।
भिखारियों की पंक्ति लम्बी.भंडारा कम पड़ गया है,
पैसों में बिकी जहांँ थाली.. वहां झूठन भी छोड़ देते हैं।
बहुत कुछ है कहने को पर क्या कहूँ  मैं.साहेब जितना लिखूँ वो कम है ,
विस्तार से लिख दिया तो..लोग पढ़ना भी छोड़ देते हैं।

©Pawan Dvivedi
  #Blossom क्या कहें

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