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पथ का जो राही राह दिखाए, सबकी मंज़िल से नेह कराये,

पथ का जो राही राह दिखाए,
सबकी मंज़िल से नेह कराये,
ऐसा दर्शन हृदय लगाऊं,
क्यूँ?परि ये मन ध्यान लगाए!

थी उत्कंठा निज साँसों की,
कोई आकर मन को बहलाये,
मन के अंदर की आंधी में भी,
प्रेम का वो एक दिया जलाये!

निश्चित ही अरि वेश- समाज की
निज-द्वेष से सबको आंकी है,
तन ही झूठा या झूठ ही तन है,
ये कल्पित मन की झांकी है।

आया हूँ तुमसे मिलने मैं,
पर है समाधि की काया तय,
मुझसे "मैं'को मिला दो ना!
यदि 'मैं' ही अरि ,तो मिटा दो ना।

©Anand Mishra गंगा माँ🙏
पथ का जो राही राह दिखाए,
सबकी मंज़िल से नेह कराये,
ऐसा दर्शन हृदय लगाऊं,
क्यूँ?परि ये मन ध्यान लगाए!

थी उत्कंठा निज साँसों की,
कोई आकर मन को बहलाये,
मन के अंदर की आंधी में भी,
प्रेम का वो एक दिया जलाये!

निश्चित ही अरि वेश- समाज की
निज-द्वेष से सबको आंकी है,
तन ही झूठा या झूठ ही तन है,
ये कल्पित मन की झांकी है।

आया हूँ तुमसे मिलने मैं,
पर है समाधि की काया तय,
मुझसे "मैं'को मिला दो ना!
यदि 'मैं' ही अरि ,तो मिटा दो ना।

©Anand Mishra गंगा माँ🙏
anandmishra6897

Anand Mishra

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गंगा माँ🙏