हल्की-फुल्की सी जिंदगी रहे, तुमसे, उससे भी बंदगी रहे, झगड़े-झंझट रहे मुझसे दूर, यूँ, सदा नई आनंदगी रहे! भर्मित ना हो सपनों के पथ, गतिमान रहे आशाओं के रथ, कमजोर ना हो शब्दों के अर्थ, मन के मेलें में सुगंधगी रहे, यूँ, सदा नई आनंदगी रहे! ओझल ना हो यादों की छाया, बोझिल ना हो कर्मों की काया, दुर्बल ना हो संस्कारों का पाया, चरित्र, वर्तन की बुलंदगी रहे, यूँ, सदा नई आनंदगी रहे! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich #जिंदगी #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia