फूलों से रथ सजा बजाकर डोली निकली शान से, पिया मिलन की बेला आई रुख़सत हुई जहान से ॥ छूटा पीछे सखी-सहेली डोली में मैं चढ़ी अकेली, भीँगे नयन सगे-संबंधी लौट गये श्मशान से ॥ जिनके संग जुड़ा था नाता जीवन,यौवन,सुख-दुख का, टूट गये वो बंधन सारे गीता और कुरआन के ॥ छोड़ जगत के नाते-रिश्ते धन-दौलत और माल-खजाने, प्रेम भक्ति से गोद भराई तृप्त हृदय मुस्कान से ॥ --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #तृप्त हृदय मुस्कान से#