राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कहीं न कहीं इन दोनों वंशों से उनकी हर एक शाखा जुड़ी हुई मिलती है। "प्रतिहार राजपूत" अपने आप को लक्ष्मण की सन्तति के रूप में सूर्यवंशी बताते हैं। चंदेलों की उत्पत्ति चन्द्रमा और ब्राह्मण गन्धर्व कुमारी से हुई। चालुक्यों को हारीत ऋषि के कमण्डल के जल से हुई। हम्मीर काव्य में चाहमानों को सूर्यवंशी लिखा।इन सब बातों से ये स्पष्ट है कि "राजपूत" वैदिक आर्यों से सम्बंधित हैं।प्रश्न ये है कि दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में "राजपूत" शब्द का कैसे और क्यों बढ़ा? इस सम्बंध में प्रसिद्ध विद्वान श्री सी.एम.वैद्य लिखते हैं---
"भारत में बौद्ध धर्म के पश्चात् जाति-व्यवस्था के बंधन धीरे-धीरे दृढ़ होने लगे और इतने दृढ़ हुए कि ये कट्टरता की सीमा तक पहुँच गए। प्रत्येक जाति अपनी-अपनी सीमा संकुचित करने लगी।"रोटी-बेटी" के सम्बंध के लिए वे ही कुल सम्मलित होते थे जो रक्त सम्बंध में शुद्ध समझे जाते थे। जो क्षत्रिय थे अधिकतर बौद्ध हो गए आर्य परंपराओं से उनका नाता टूट गया।ऐसे परिवारों को बुरी तरह बहिष्कृत किया गया।परिवारों की कुलीनता को निश्चित करना और भी कठिन हो गया।इसका असर ब्राह्मण ,वैश्य, और शूद्र वर्ण पर भी हुआ।इस तरह अपने अपने क्षेत्र तक सीमित हो गए। अतः ये कहा जा सकता है कि जो भारतीय आर्यों में क्षत्रिय थे वे ही सत्ता चले जाने के पश्चात राजपूत हो गए।
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कुछ विद्वान राजपूतों को - हूण, शक,सीथियन,गुर्जर और विदेशी जातियों की सन्तान भी मानते हैं!🤔 आज के लिए इतना ही काफ़ी है आगे की चर्चा फिर कभी.....
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बने रहिये #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1
क्रमशः ----
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