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Divyanshu Pathak
इश्क़ जिनको है अपने वतन से वो युहीं सिर कटाते रहेंगे। शम्मा महफ़िल में जलती रहेगी उड़ पतंगे भी आते रहेंगे।— % & मेवाड़ के राजा राजसिंह और चारूमती के विवाह में औरंगजेब ने बाधा डालने की कोशिश की तब उन्होंने सरदार रतन सिंह जो कि उदयपुर सलूम्बर के सरदार थे को युद्ध में जाने का आदेश दिया।अभी उनके विवाह को सप्ताह भर भी नहीं हुआ था लेकिन वे लड़ने के लिए जा रहे थे इसलिए पत्नी के पास सेवक भेजकर कोई निशानी लाने को कहा जब चौहान वंश की एक नवविवाहित कन्या जिसके हाथों की मेहंदी और पैरों का महावर अभी फीका भी नहीं हुआ था ने यह सुना तो सोचा कि कहीं मेरे मोह में आकर रतन सिंह युद्ध से विमुख न हो जायें।इसलिए 'सहल कंवर' ने अपना
Divyanshu Pathak
17 वीं शताब्दी में भारत दुनियाभर के अमीर देशों में से एक था। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद - मुग़ल साम्राज्य सूबेदार और जागीरदारों के हाथ में चला गया। वे आपस में लड़ने लगे। 1739 में नादिरशाह के आक्रमण और 1761 में अहमदशाह अब्दाली के हमले ने मुग़ल साम्राज्य को तबाह कर दिया। 1857 ई.तक बहादुर शाह जफ़र नाममात्र का सम्राट रहा। मराठों ने मुगलों की सुरक्षा का दायित्व ले रखा था वे पेशवाओं के सहारे अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे। 14 जनवरी 1761 में अहमदशाह अब्दाली से मराठों ने पानीपत की तीसरी जंग लड़ी जिसमें अहमदशाह अब्दाली जीत गया। अगर मराठे जीत गए होते तो अंग्रेज उनसे लोहा लेने का साहस नहीं करते। ख़ैर- अवध- 1728 ई. में सूबेदार सादत ख़ाँ (मीर मुहम्मद अमीन ) ने मुग़ल साम्राज्य से अलग हो स्वतंत्र राज्य बना लिया। उसके बाद उसका भतीजा सफ़दर जंग नबाब बना इसकी मृत्यु के बाद पुत्र शुजाउद्दौला अवध का नवाब बना। 1764 ई. में बक्सर का युद्ध कर हार गया और इलाहाबाद की सन्धि कर ली। वह ईस्टइंडिया कम्पनी का आश्रित बन गया जिसे - 1801 में वेलेजली ने सहायक सन्धि की और 1856 में डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। : #पाठकपुराण #yqdidi #yqhindi #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 5
Divyanshu Pathak
भूख न मेटे मेड़तो न मेटे नागौर। रजवट भूख अनौखडी मरयाँ मिटे चित्तोड़।। 23 अक्टूबर 1567 ई. में अक़बर ने चित्तोड़ पर हमला कर दिया कई माह तक संघर्ष चला 'जयमल' और पत्ता ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए।अक़बर ने बारूद की बन्दूक से जयमल को घायल कर दिया लेकिन पत्ता ने उनको अपने कन्धे पर बिठाया और युद्ध क्षेत्र में चारों हाथ से तलवार चलाते शाहिद हो गए तब जाकर 25 फरबरी 1568 को अक़बर ने चित्तोड़ पर अधिकार करपाया। कहते हैं कि अक़बर "जयमल और पत्ता" की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि उनकी गजारूढ़ प्रतिमायें बनबाकर आगरा किले के मुख्यद्वार पर लगवाईं जिनको देखने का उल्लेख "फ्रांसीसी यात्री बर्नियर" ने अपने यात्रावृतांत *ट्रेवल इन दी मुग़ल एम्पायर* में किया है। 🙏😊 #पाठकपुराण #yqdidi #yqhindi #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 4 चित्र - चित्तोड़गढ़ किले की दीवार के अंदर समाधेस्वर मन्दिर और रानी पद्मावती के "जौहर स्थल" के परिक्षेत्र का है। 😊☕
Divyanshu Pathak
सिंघ सवन सत्पुरुष वचन कदली फलै इकबार! तिरिया-तेल हम्मीर-हठ चढ़ै न दूजीबार। जैसे शेरनी एक ही बच्चे को जन्म देती है,सत्पुरुष के द्वारा दिया गया वचन अटल होता है।जैसे केले के पौधे पर भी एक ही बार फल आता है और स्त्री को जीवन में एक ही बार तेल चढ़ता है उसी प्रकार हम्मीर द्वारा दिया गया वचन कभी नहीं बदलता। 17 युद्ध में से 16 युद्ध जीतने वाला एक शानदार रणथंभौर का चौहान वंशी राजा हम्मीर देव। 1282 ई. में उसे अपने पिता के 32 बर्ष का शासन पूर्ण होते ही राजगद्दी पर बिठा दिया गया। गद्दी पर बैठते ही उस महत्वकांक्षी युवा राजा ने 10 बर्षों में ही भीमरस के शासक अर्जुन,धार के परमार, और मेवाड़ के समर सिंह को परास्त कर पूरे राजस्थान में तो अपनी धाक जमा ही ली साथ ही आबू,कठियाबाड़, पुष्कर, त्रिभुवन,चम्पा को जीतकर रणथंभौर आकर 'कोटियजन' यज्ञ किया। ऐसा वीर था हम्मीर देव चौहान। क्रमशः--01 #पाठकपुराण #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 3 #हम्मीरदेव_चौहान_रणथंभौर #yqdidi #yqhindi
Divyanshu Pathak
जब तक प्रतिहारों में साहसी-पराक्रमी शासक उत्पन्न होते रहे उनका राज्य विस्तार भी हुआ।शुरुआती दौर में मण्डोर के प्रतिहार- नागभट्ट,शिलुक,बाउक शक्तिशाली रहे।उज्जैन और कन्नौज के प्रतिहारों में भी कई प्रतिभासंपन्न योद्धा हुए।समूचे राजस्थान पर अधिकार कर उन्होंने- गुहिल,राठौड़,चौहान तथा भाटियों को सामन्त बनाकर राज्य किया।जैसे ही इनकी केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हुई तो सामन्तों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।जिस राजस्थान की मिट्टी में उनका उदय हुआ,उसी राजस्थान को वे हमेशा के लिए अपना न रख सके। : डॉ गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि - जोधपुर के शिलालेखों से यह प्रमाणित होता है कि प्रतिहारों का अधिवासन मारवाड़ में लगभग छठी शताब्दी के द्वित्तीय चरण में हो चुका था।उस युग में राजस्थान के पश्चिमी भाग को "गुर्जरत्रा" कहते थे इसलिए प्रतिहारों को "गुर्जर-प्रतिहार" या गूजर सम्बोधन मिला। विद्वानों के अनुसार इनकी राजधानी जो कि कर्नल टॉड के अनुसार 'पीलोभोलो' लिखा है वो आधुनिक भीनमाल या बाड़मेर हो सकता है। : यूँ तो भगवान लाल इन्द्रजी ने इनको कुषाणों के समय बाहर से आए विदेशी माना है।बम्बई-गजेटियर ने भी इनको
Divyanshu Pathak
"जैत्रसिंह" मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना। (1213 - 1252 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर जैत्रसिंह के बैठते ही जालौर में चौहान राज्य के संस्थापक कीर्तिपाल से गुहिल राजा सामन्तसिंह की पराजय का बदला लेने के लिए अपने समकालीन नाडौल के चौहान राजा उदयसिंह पर आक्रमण कर दिया।उदयसिंह ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी पौत्री रुपादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर मेवाड़ और नाडौल में मैत्री स्थापित की।जैत्रसिंह ने मालवा के परमार राजा देवपाल को हराकर अपना अधिकार जमाया और गुजरात के सोलंकियों का मैत्री प्रस्ताव ठुकरा दिया।इधर दिल्ली में तुर्कों की जड़ें मज़बूत हो गईं तो "इल्तुतमिश" ने मेवाड़ को अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया। जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था। 1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई। : जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छा
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"बप्पा के बाद" भोज ने मेवाड़ में शान्ति बनाए रखी,महेंद्र की हत्या कर भीलों ने उनकी ज़मीन छीन ली।नाग केवल नागदा के आसपास अपना अधिकार बनाये रखा।शिलादित्य अधिक योग्य निकला उसने भीलों को हराकर अपनी भूमि बापस ली।अपराजित ने शिलादित्य का साथ दिया और गुहिलों का वर्चस्व बढाया।कालभोज के बारे में जानकारी नहीं ऐसा माना जाता है कि यशोवर्मन के सैन्य अभियानों में मदद की थी।खुम्मान को मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ा किन्तु वे कौन थे ये विवादास्पद है।मत्तट से महायक तक का समय राष्ट्रकूटों,प्रतिहारों के साथ उलझने में गया और वे सामन्त बन कर रहे। 877 ई. से 926 ई. के बीच खुम्मान तृतीय ने गुहिल राजवंश को पुनः प्रतिष्ठित किया।भरतभट्ट ने इसे बनाये रखा।अल्लट ने देवपाल परमार को हराकर गुहिलों की सैन्य शक्ति को बढ़ाया।नरवाहन ने भी मेवाड़ को सुदृढ़ किया। : शक्तिकुमार के शासनकाल में परमार नरेश मुंज ने चित्तोड़ के दुर्ग और आसपास के क्षेत्र को जीत लिया। : परमारों को चालुक्यों ने हराकर चित्तोड़ पर अधिकार किया।अम्बाप्रसाद को चौहानों का सामने करते समय वाक्पतिराज से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुई।उसके बाद गुहिलों में कोई ऐसा शासक नहीं हुआ जो उनकी प्रतिष्ठा को ब
Divyanshu Pathak
"बप्पा-रावल" ( क्रमशः-02 ) जब उस युवा लड़को को नागदा का सामन्त बना दिया गया तो वहाँ के जो पुराने सामन्त थे विद्रोह करने लगे उसी दौरान किसी विदेशी आक्रमण की सूचना मिली अन्य सामन्त इस अवसर का फ़ायदा उठाना चाहते थे नव सीखिए सामन्त को सेनापति बनाकर युद्ध में भेज दिया।मैदान में जाकर नए जोश के साथ सेनापति ने आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया और विजय प्राप्त की साथ ही उन विरोधी सामन्तों को भी समझाया तब किसी ने उनको सम्बोधित किया भई- ये है सबका बाप और वही बाप आगे चलकर 'बप्पा' हो गया। ऐसा सुना गया है कि मोहम्मद-बिन-क़ासिम की फ़ौज लेकर यज़ीद ने सिंध प्रदेश को जीत लिया और अपने क्षेत्र को विस्तार देने के लिए उसने चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया तब चित्तोड़ की रक्षा करने के लिए बप्पा ने उनसे युद्ध किया और जब मुस्लिम सेना भाग खड़ी हुई तो उनका पीछा करते करते अफगानिस्तान के ग़जनी शहर में जाकर अपना झण्डा गाढ़ दिया। तो वहाँ के शासक ने अपनी बेटी का ब्याह बप्पा के साथ कर दिया।इसी विजय के क्रम को आगे बढ़ाते हुए बप्पा ने ईरान,इराक़, तुर्क जैसे कई राज्य जीते और अनेक विवाह किए।कहते हैं कि बप्पा की मुस्लिम
Divyanshu Pathak
"बापा-रावल" ईडर के राजा नागादित्य की भीलों ने हत्या कर राज्य छीन लिया तो उनकी पत्नी अपने तीन साल के बच्चे को किसी भी तरह बचाकर बड़नगरा में रहने वाले उनके कुल पुरोहित नागर ब्राह्मण जिन्होंने गुहदत्त की रक्षा की थी के वंशज "वंशधर" जी के पास ले गई।जब ब्राह्मणों को भीलों से खतरा हुआ तो वे बच्चे को लेकर भाण्डेर दुर्ग के जंगल में "नागदा" के समीप 'पराशर' नामक स्थान पर लेजाकर निवास करने लगे।इसी जंगल में गाय चराने वाले एक ग्वाले को 'बप्पा' के रूप में जाना गया। एक मज़ेदार बात ये है कि अभी तक कोई इतिहासकार ये पता नहीं लगा पाया है कि "बप्पा" किसी राजा का नाम था या 'उपाधि' और अगर यह उपाधि थी तो किसकी? : कनर्ल टॉड उसे 'शील' कहते हैं।श्यामलदास जी उन्हें शील का पोता 'महेंद्र' बताते हैं।डॉ. डी. आर.भण्डारकर उनको 'खुम्माँण' श्री ओझा जी ने उनको 'कालभोज' लिखा है। : नाम कुछ भी रहा हो लेकिन 'बप्पा'- मेवाड़ के इतिहास का एक शानदार पृष्ठ है।जन श्रुतियों के आधार पर आपको उनसे मिलवाते है----- : वंशधर रोज की तरह अपनी गायों का दूध निकाल रहे थे।कपिला गाय के नीचे बैठे तो उसके