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बेकार में क्यूँ ज़िन्दगी को ढूंढ़ रहें हो आँसू का ह

बेकार में क्यूँ ज़िन्दगी को ढूंढ़ रहें हो 
आँसू का है ये शहर ख़ुशी ढूढ़ रहें हो 

उम्मीदें है जलती यहाँ देखों न चिता पे 
श्मशान में ये कैसी हँसी ढूंढ़ रहें हो 

खिलता न कोई फूल यहाँ अब है चमन में 
पतझड़ में बता क्यूँ कली को ढूढ़ रहें हो 

इंसान हूँ इंसान की कमजोरियाँ मुझमें 
क्यूँ कर बता जीवन में कमी ढूढ़ रहें हो 

पत्थर न पिघलता है कभी ग़म से किसी के 
क्यूँ रेत के सागर में नमी ढूढ़ रहें हो 

नेकी बदी का तेरे सभी चिट्ठा रखे वो 
लिखने को बचा क्या जो बही ढूढ़ रहें हो...✍🏻

©D. J.
  #alonesoul  sad shayari
mayankjain8215

D. J.

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