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White भूत ,वर्तमान और भविष्य ( मन की पीड़ा ) ना

White भूत ,वर्तमान और भविष्य 
 ( मन की पीड़ा )
ना    ईद    में   रह   गई    वो  मिठास , ना  अब दिवाली  ही  रोशन   है,
रंगहीन      अब    होली    है ,  और फ़ीका    हर    घर का आँगन  है,

कोई   रंग   बना   अब    हिन्दू है  ,    कोई   मुसलमान का रंग हुआ,
किस     रंग      से   खेले    होली   अब ,जब   हर एक रंग बेरंग हुआ,

प्रेम    सबके     दिलो    का    बाँट दिया ,इन  गद्दी के सियासतदारों ने,
क्यूँ     मानवता        को     कुचल     दिया ,  कौम की इन सरकारों ने,

वो    कितना    प्यारा   माज़ी था, जब हिय से प्रेम की गंगा बहती थी,
 जब    शाइस्ता     और       फरजाना  ,   राधा    की चुनरी सीती थी ,

जब    वर्तमान    ही    ऐसा    है ,  ना   जाने भविष्य क्या होगा,
ना   राम     ही    अब    जी  पायेगा ,     हश्र पैगम्बर का क्या होगा,

रंग   लहू   का  एक   था  जब ,   फिर क्यूँ दो टुकड़ों में बाँट दिया,
वनवास   दिया    है    लक्ष्मण    को , और हाथ राम का काट दिया,

जिस    मन    मे    इतना    मैल   भरा , उसमें राम कहाँ रह पायेंगें,
देख   के   धरती   का विनाश , पैगम्बर और राम भी अश्क़ बहाएंगे,

कब    होगी    दिवाली    रोशन ,  कब   रंग   बिखरेंगे होली के,
क्या मीठी होगी ईद कभी,मिलेंगे दिल फ़िर राम रहीम की टोली के ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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