Khwab
रात के अंधेरे में
अपने जिस्म की कराह को कुरेदते-कुरेदते
सुराही सी गर्दन को बिना सहारे बिस्तर पर सहेजते-2
अधखुली आँखों से कुछ ख़्वाब की तरफ़ देखते हुए
तेरे बदन पर चाँद की छनती हुई रौशनी
कुछ इस तरह सिमट गई
के मानों झील की गहराई से टकरा कर लौटती हुई #Poetry#Love#poem#kavishala#nojotopoetry#erotica