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खेल चल रहा है कभी तन्हाइयों से तो कभी खामोश लफ़्ज़

खेल चल रहा है
कभी तन्हाइयों से तो
कभी खामोश लफ़्ज़ों से
खेल चल रहा है
इन्सान के जिंदगी से
भूख भी दम तोड रहा है
तरसती निगाहों से

बातें चली रही थी जब
कहीं जन्त बनाने की
फिर महल्लोसे  केसे
नफ़रत चीखती चिल्लाती है
खेल चल रहा है
नकाबपोश चेहरों की
जख्म ताजा है अभी
वक़्त था मरहम लगाने की
नमक छिड़क कर
ना कि दर्द बढ़ाने की

खेल चल रहा है
गुमराहियों में धकेलने की
अपने वादे से मुकर जाने की
खेल चल रहा है
फिर से एक नई सपने दिखाने की

©Tafizul Sambalpuri खेल चल रहा है
खेल चल रहा है
कभी तन्हाइयों से तो
कभी खामोश लफ़्ज़ों से
खेल चल रहा है
इन्सान के जिंदगी से
भूख भी दम तोड रहा है
तरसती निगाहों से

बातें चली रही थी जब
कहीं जन्त बनाने की
फिर महल्लोसे  केसे
नफ़रत चीखती चिल्लाती है
खेल चल रहा है
नकाबपोश चेहरों की
जख्म ताजा है अभी
वक़्त था मरहम लगाने की
नमक छिड़क कर
ना कि दर्द बढ़ाने की

खेल चल रहा है
गुमराहियों में धकेलने की
अपने वादे से मुकर जाने की
खेल चल रहा है
फिर से एक नई सपने दिखाने की

©Tafizul Sambalpuri खेल चल रहा है

खेल चल रहा है #कविता