खेल चल रहा है कभी तन्हाइयों से तो कभी खामोश लफ़्ज़ों से खेल चल रहा है इन्सान के जिंदगी से भूख भी दम तोड रहा है तरसती निगाहों से बातें चली रही थी जब कहीं जन्त बनाने की फिर महल्लोसे केसे नफ़रत चीखती चिल्लाती है खेल चल रहा है नकाबपोश चेहरों की जख्म ताजा है अभी वक़्त था मरहम लगाने की नमक छिड़क कर ना कि दर्द बढ़ाने की खेल चल रहा है गुमराहियों में धकेलने की अपने वादे से मुकर जाने की खेल चल रहा है फिर से एक नई सपने दिखाने की ©Tafizul Sambalpuri खेल चल रहा है