मैं जानती हूं मैं बे-बेहेर लिखती हूं क्या करूं जो मैं केहेर लिखती हूं बुरा लगे भी, तो सह लेना तुम मैं मानती हूं के ज़ेहेर लिखती हूं वक्त क्या है, हमसे न पूछो कोई मैं तो पेहेर दर पेहेर लिखती हूं लाज़मी है लोगों का मुझे पढ़ के जाग जाना वो क्या है न, मैं वक्त-ए-सेहेर लिखती हूं जो वो कभी पूछे के क्यूं पढ़ते हो मुझे, कहना उनसे, मैं अल्फ़ाज़-ए-मेहेर लिखती हूं #कविता #हिंदी #nojoto