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कही नजर ना लग जाये मुझको,सबसे छुपकर बनवाया था गले

कही नजर ना लग जाये मुझको,सबसे छुपकर बनवाया था
गले में ताबीज़ है मेरे,माँ ने घबराकर पहनाया था।
आशा थी माँ को काटेगा ये,मेरे सारे दुःख और क्लेश
नव चेतन ऊर्जा का ये करवा देगा तन मन में प्रवेश ।
विश्वास था ये या आडम्बर
मन विचलित विस्मित था मेरा
क्या रेशम का अदना सा धागा लिख सकता है आज और कल मेरा ।
पर क्या करता मेरे लिए तो प्यार था मेरी माँ का ये
धागे के रेशे रेशे में लिपटा दुलार था मेरी माँ का ये ।।

©कपिल मेरी कलम से
कही नजर ना लग जाये मुझको,सबसे छुपकर बनवाया था
गले में ताबीज़ है मेरे,माँ ने घबराकर पहनाया था।
आशा थी माँ को काटेगा ये,मेरे सारे दुःख और क्लेश
नव चेतन ऊर्जा का ये करवा देगा तन मन में प्रवेश ।
विश्वास था ये या आडम्बर
मन विचलित विस्मित था मेरा
क्या रेशम का अदना सा धागा लिख सकता है आज और कल मेरा ।
पर क्या करता मेरे लिए तो प्यार था मेरी माँ का ये
धागे के रेशे रेशे में लिपटा दुलार था मेरी माँ का ये ।।

©कपिल मेरी कलम से
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कपिल

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मेरी कलम से