हम मन से मजबूत बहुत है लाचारियों को लावारिस छोड़ आए हैं हाथ गवांकर भी हमने हौसले रखाए है बोझ अपना अपने ही कंधों पर उठाएंगे वरना अपनी ही नज़रों में गिर जाएंगे मन से मजबूत ये तन से भी,कमजोर बहुत है तन के पूरे मन से अपंग बहुत है जहान में शर्म गैरत स्वाभिमान झाड़कर बैठे हैं गिरेबान से मोटी चमड़ी को मुफ्त की खाने का ऐसा है चस्का गालियां का या लात घूसों का भी फर्क नहीं पड़ता बबली भाटी बैसला, ©Babli BhatiBaisla तन मन