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सिसक रहा हूँ रोज, अब तू नहीं है क्या, अश्क़ लिए मेर

सिसक रहा हूँ रोज, अब तू नहीं है क्या,
अश्क़ लिए मेरी आँखें, कुछ जता रही है क्या।

टुकड़े लिए दिल के, भटक रहा था मैं,
अब उस दिन की बात, तू बता रही है क्या।

कहता हूँ चार दिन की जिंदगी है,
रोज मुझे मारकर, ये और घटा रही है क्या।

मैं था जब, तो चिभन थी मुझमें
अब हो गया दूर, मेरी खता है क्या।

मैं तो फिर से लौटना चाहता हूँ,
चल बता, तेरी रज़ा है क्या।

कश तो रोज जलता ही रहा सिगरेट का,
अब उठ रहा है धुँआ, ज़िन्दगी सुलग रही है क्या। #Gazal #Poetry #TST #sad #Bavlikalam #nojotohindi
सिसक रहा हूँ रोज, अब तू नहीं है क्या,
अश्क़ लिए मेरी आँखें, कुछ जता रही है क्या।

टुकड़े लिए दिल के, भटक रहा था मैं,
अब उस दिन की बात, तू बता रही है क्या।

कहता हूँ चार दिन की जिंदगी है,
रोज मुझे मारकर, ये और घटा रही है क्या।

मैं था जब, तो चिभन थी मुझमें
अब हो गया दूर, मेरी खता है क्या।

मैं तो फिर से लौटना चाहता हूँ,
चल बता, तेरी रज़ा है क्या।

कश तो रोज जलता ही रहा सिगरेट का,
अब उठ रहा है धुँआ, ज़िन्दगी सुलग रही है क्या। #Gazal #Poetry #TST #sad #Bavlikalam #nojotohindi