White हर इक शहर से कोई, गांव निकल आता है, इंतहा दर्द की हो,अश्क छलक जाता है। एक पगडंडी,सी चलती है, पांव के नीचे, हवा के झोंकों से कोई, राह भटक जाता हैं। कोई आता हैं तो,उसको जताऐ कैसे, कोई जाता हैं तो,उसको बुलाए कैसे। सराय समझो ना,ये तो मेरा घर "काफ़िर", ज़ख्म रिसते है तो, पैमाना छलक जाता है। ये सफ़र पूरा नहीं,आज भी अधुरा है, तलाश पूरी नहीं, काम सब अधुरा है। पास मंज़िल के आने से कुछ नहीं होता, आखिरी ज़ाम में ही, पांव बहक जाता है। ©Manish ghazipuri #life_in my village ❤️😍