स्थाई अनुभव बन चुका हैँ ये उदासी और ऊब वाले जीवन का तभी तो अटका रह गया हैँ वो एक ही जगह पर निस्पंद सा जैविक आवश्श्यकताये होती गई गौण इन कुंठाओ और पेचीदिगियो की वजह से जिन्दगी दूर हुईं हैँ लावण्य से छलकती हुईं संध्याओ से डसता गया अतीत वर्तमान की सुरम्य साँसों को हो चकी स्थगित सभी यात्राएं जीवन की डरने लगा हैँ मन किसी भी अजनबी जगह पर पहुंचने से जीवन बंधक बन गया हैँ अब ऊब उदासी और अवसाद के विराट वर्तुलाकार चक्र मे स्थाई अनुभव........