रचना कवि अंतर मन की गाथा, परंतु लिखना हैं मेरी जिज्ञासा। जिस दिन कलम नहीं मैं चलाता, उस दिन तिक्ष्ण सा लगता हूं प्यासा। लिखता हूं, मैं लिखता ही रहूंगा, चाहे खुशी आए या आए निराशा। सफल हो जाऊं जीवन के पथ पर है प्रभु जन - मन की ये अभिलाषा। कुछ शब्दों को तौले कुछ छोड़ दें, मैंने रचना नहीं ये हीरा है तराशा। हाय ये बिदेशी बोली और उनका रंग, लगता है मुझे ये तो अंधों में तमाशा। अरबी, ऊर्दू और फ़ारसी अच्छे है, पर मुझे पसंद है अपनी मातृ भाषा। अभी नहीं लेकिन एक दिन जरूर बदलेंगी मेरी जीवन की भी पासा। खाया तो होगा तुमने भी बचपन में पवित्र, गोल गोल मिश्री और बताशा। मृत्युंजय विश्वकर्मा ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" कविता अंतर मन की गाथा। #mjaivishwa #bestgazals #bestcomposition #bestonnojoto #bestnojoto