आंसुओं के सैलाब में,मन की टूटी हुई कश्ती बह चली कब तक तैरना है नहीं पता,बस यहाँ वहाँ डगमगा चली ये आँसुओं की उफनती हुई लहरें मेरे मन की टूटी हुई कश्ती को बहका चली गर थम जाए तेरी यादों का सिलसिला तो थोड़ी गुंजाइश रह जाए जो इस वक़्त है भयकंर तबाही मची बहुत ही शांत दरिया सा दिखता था कभी जो मेरा मन आज तेरी बेरुख़ी की मार झेलते झेलते,हर तरफ़ है खलबली मची अब और नहीं सहन होता मुझसे,न बचा है कुछ मेरे पास मैं शांत हो भी जाऊं मगर मेरे अंदर है मरी हुई ही ख्वाहिशें बची ©Richa Dhar #Nature आंसुओं का सैलाब