Nojoto: Largest Storytelling Platform

दो और दो हों चार ज़रूरी तो नहीं। न्याय व्यवस्था हो

दो और दो हों चार ज़रूरी तो नहीं।
न्याय व्यवस्था हो एकाकार ज़रूरी तो नहीं।

ज़हमते उठाना क्यूं जब भुगतना किसी और को हो,
हम रखें कोई सरोकार ज़रूरी तो नहीं।

बेटियां जलती हैं जो किसी और की हैं
रोटियां छिनती हैं जो किसी और की हैं
लाचारों का बनना मददग़ार ज़रूरी तो नहीं।

कल कोई और दरिंदा जिस्म कोई नोचेगा
कल कोई और भी अपने हालात को सोचेगा
हम हीं हो अगला शिकार ज़रूरी तो नहीं।

तुम नहीं हो कोई नेता ये ग़लती तुम्हारी है।
नहीं हो तुम अभिनेता ये व्यथा तुम्हारी है
हो न्याय हीं बार- बार ज़रूरी तो नहीं।

हो औरत तो तुम्हें औकात में अपनी रहना होगा।
अपनी खुद्दारी को मर्दों से कम आंकना होगा।
वो लड़के हैं, लड़कों से ग़लतियां हो हीं जाती है।
संस्कारों की तमाम बातें तो लड़की के हिस्से आती है।

इस सोच का करना बहिष्कार ज़रूरी तो नहीं।
मर्दों को भी देना संस्कार ज़रूरी तो नहीं।

कुछ होगा फिर तो कैंडल मार्च निकालेंगे
तोड़ना ये सिलसिलेवार ज़रूरी तो नहीं।

©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी)
  समाज की विडंबना
#मनिपुर #नारी #स्त्री #समाज
#Manipur #Women #girls #Society #law #Hypocrisy