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समाज की बेड़ियों मे बंधकर औरत ख़ुद टूट जाती है पर

 समाज की बेड़ियों मे बंधकर औरत ख़ुद टूट जाती है
परिवार की इज्ज़त के खातिर कविता बन कर रह जाती है...

©Akansha Agarwal
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