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ए गिलहरी! तुझ में मेरा बचपन दिखता उच्छृंखल प्यारा

ए गिलहरी!
तुझ में मेरा बचपन दिखता
उच्छृंखल प्यारा बेफिक्र
जहाँ भेदभाव नहीं टिकता
हर घर आँगन डाली
हर थाली व प्याली
पैसे से न था बिकता 
प्यार से भरी निगाहें
देखने को आतुर चपलता
अब रिश्ते बड़े हो गए
परोसते सिर्फ गम्भीरता।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #गिलहरी