अंहिसा छन्द :- शीश ये झुकाता हूँ । मातु को बुलाता हूँ ।। सिंह वाहिनी माता । द्वार आज मैं जाता ।।१ आज क्या हमारा है । आपका सहारा है ।। लिया दिया छूटेगा । मोह देख टूटेगा ।।२ हार के न हारा हूँ । श्याम को पुकारा हूँ ।। नाम श्याम लेता हूँ । पार घाट होता हूँ ।।३ ज्ञान का उजाला था । नाम भी निराला था ।। मित्र जो तुम्हारा था । ज्ञान का पिटारा था ।। १२/१९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अंहिसा छन्द :- शीश ये झुकाता हूँ । मातु को बुलाता हूँ ।। सिंह वाहिनी माता ।